साहित्यिक सचेतना का द्वितीय वार्षिकोत्सव मुंबई में भव्यता के साथ सम्पन्न, पं. जुगल किशोर त्रिपाठी ने रखे अद्वैत दर्शन पर विचार
झांसी/मुंबई।
साहित्यिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को समर्पित संस्था साहित्यिक सचेतना का द्वितीय वार्षिकोत्सव मुंबई के गोरेगांव में अत्यंत हर्षोल्लास एवं गरिमामयी वातावरण में सम्पन्न हुआ। इस आयोजन में देशभर से आए प्रतिष्ठित साहित्यकारों, चिंतकों और समाजसेवियों ने भाग लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था की संरक्षिका आदरणीया शारदा ओझा जी ने की।
कार्यक्रम की शुरुआत संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष नरेंद्र रावत ‘नरेन’ जी के ओजस्वी उद्बोधन से हुई, जिसमें उन्होंने सनातन धर्म के वैदिक सत-सिद्धांतों और अद्वैत-दर्शन की सत्यात्मकता के माध्यम से समाज और राष्ट्र को जागरूक करने की बात कही। उन्होंने बताया कि संस्था का मुख्य उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे पुरातन मूल्यों की पुनर्स्थापना द्वारा सतयुगीन वातावरण का निर्माण करना है।
इस अवसर पर मंच की राष्ट्रीय महासचिव प्रीति डिमरी ‘प्रीति’ जी ने युवाओं और बच्चों को साहित्यिक सचेतना से जुड़ने का आह्वान किया, वहीं राष्ट्रीय प्रभारी शारदा कनोरिया जी ने संस्था के कार्यों को विस्तार देने की बात कही।
कार्यक्रम की विशेष उपलब्धि रही कि साहित्यिक सचेतना मंच द्वारा चार साहित्यकारों को उपनाम अलंकरण से सम्मानित किया गया। इसमें:
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उर्मिला पपनोई को “श्रीजा”,
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मंगेश सिंह को “आशु कवि”,
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शारदा कनोरिया को “शुभा”,
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तथा स्मृति मिश्रा को “वाची” नाम प्रदान किए गए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुश्री रूपराशि (वस्त्र आयुक्त, भारत सरकार), राजेंद्र अग्रवाल (वाइस चेयरमैन, APML ग्रुप), तथा विशिष्ट अतिथि सारांश अग्रवाल, राजेंद्र कुमार दीनू भाई पटेल (उमिया माता चैरिटेबल ट्रस्ट), और कुंदा नारायण फाटक (राष्ट्रीय सेविका, धर्म जागरण) ने मंच के सिद्धांतों से सहमति जताई और भविष्य में सहयोग का आश्वासन दिया।
इस गरिमामयी अवसर पर झाँसी जनपद के बम्हौरी, मऊरानीपुर निवासी प्रख्यात साहित्यकार पं. जुगल किशोर त्रिपाठी ने अद्वैत दर्शन, धर्म और अध्यात्म पर अपने सारगर्भित विचार रखे। उन्होंने कहा,
“अद्वैत और धर्म हमें सबको एक साथ रहने और सामूहिक प्रयास की प्रेरणा देता है। यह मानव के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।”
इसके बाद उन्होंने अपनी चर्चित कविता “शिक्षक” का सस्वर पाठ किया, जिसे सुनकर पूरा सभागार भाव-विभोर हो उठा। श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट और “वाह-वाह” की गूंज के साथ उनकी रचना का भरपूर स्वागत किया।
कार्यक्रम के अंतिम चरण में बैंक ऑफ बड़ौदा की संगीत टीम द्वारा भजन संध्या प्रस्तुत की गई, जिसने पूरे माहौल को भक्तिमय बना दिया। कार्यक्रम में उपस्थित सभी साहित्यप्रेमी और श्रोतागण इस अनूठे आयोजन से अभिभूत नजर आए।
साहित्यिक सचेतना के इस सफल आयोजन ने सनातन संस्कृति, वैदिक चिंतन और साहित्यिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया। कार्यक्रम की सफलता ने यह सिद्ध कर दिया कि सत्य, साहित्य और संस्कृति का संगम जब मंच पर आता है, तो वह समाज में नई चेतना का संचार करता है।
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