जनसुनवाई पोर्टल का अधिकारी बना रहे मजाक, फर्जी निस्तारण कर शासन को कर रहे गुमराह
बाल विकास परियोजना कार्यालय कमासिन पर गंभीर आरोप, शिकायतकर्ता को धमकाकर भगाया गया
बांदा।
राज्य सरकार द्वारा जनता की समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए जनसुनवाई पोर्टल की शुरुआत की गई थी, जिससे आमजन को कार्यालयों के चक्कर न काटने पड़ें और उनकी समस्याओं का डिजिटल माध्यम से निस्तारण हो सके। परंतु, इस व्यवस्था का जिम्मेदार अधिकारी ही अगर इसका मजाक उड़ाने लगे और फर्जी रिपोर्ट लगाकर मामले को रफा-दफा कर दे, तो न केवल शासन की मंशा पर पानी फिरता है बल्कि आमजन का भरोसा भी टूटता है।
ऐसा ही एक मामला बांदा जनपद के कमासिन ब्लॉक स्थित बाल विकास परियोजना कार्यालय से सामने आया है। मवई गांव के डिघौरा निवासी कमल कुमार ने जनसुनवाई नंबर 1076 पर शिकायत दर्ज कराई थी कि आंगनबाड़ी केंद्र में कार्यरत कार्यकर्ता रामबाई द्वारा बच्चों को वितरित किया जाने वाला पोषाहार सड़ा-गला, एक्सपायरी डेट वाला एवं बेहद खराब गुणवत्ता का था। कमल कुमार का आरोप है कि इस पोषाहार को खाने से कई बच्चों की तबीयत भी बिगड़ी, लेकिन जब उन्होंने शिकायत की, तो न कोई अधिकारी गांव आया, न जांच की, न ही उनसे संपर्क किया गया।
बिना जांच, ऑफिस में बैठकर फर्जी निस्तारण
कमल कुमार ने बताया कि शिकायत की जांच बाल विकास परियोजना अधिकारी, कमासिन को सौंपी गई थी। लेकिन अधिकारियों ने न तो शिकायतकर्ता से बात की, न कोई साक्ष्य एकत्र किए, और न ही गांव का दौरा किया। सिर्फ कार्यालय में बैठकर संबंधित दोषी कार्यकर्ता रामबाई से बात कर ली और उसी के बयान के आधार पर मनगढ़ंत रिपोर्ट तैयार कर 24 जून को मामला निस्तारित दिखा दिया गया। यह रिपोर्ट इस बात को ही नकारती रही कि कोई बच्चा बीमार हुआ है और पोषाहार में कोई गड़बड़ी नहीं थी।
शिकायतकर्ता को धमकाकर भगाया गया
कमल कुमार का यह भी आरोप है कि जब वह अपनी केवाईसी कराने केंद्र पहुंचे, तो कार्यकर्ता रामबाई ने उनके कागज फाड़ दिए और उन्हें यह कहकर धमकाया कि “अब तक जो मिल रहा था वह भी बंद हो जाएगा, बहुत शिकायतें करते हो, अब देख लेंगे।” इस पूरे मामले में न केवल शासन की मंशा की अनदेखी की गई बल्कि शिकायतकर्ता को मानसिक रूप से भी प्रताड़ित किया गया।
क्या लेंगे उच्चाधिकारी संज्ञान?
यह गंभीर सवाल बनता जा रहा है कि जब पोर्टल जैसी पारदर्शी व्यवस्था का इस प्रकार दुरुपयोग होगा और फर्जी रिपोर्ट लगाकर अधिकारियों की जिम्मेदारी से बचने की कोशिश होगी, तो आम जनता न्याय की उम्मीद कहां से करे? ऐसे अधिकारी न केवल शासन की छवि धूमिल कर रहे हैं, बल्कि गरीबों व बच्चों के स्वास्थ्य से भी खिलवाड़ कर रहे हैं।
अब यह देखना होगा कि क्या जिले के उच्चाधिकारी इस मामले का स्वतः संज्ञान लेंगे और दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करेंगे या फिर यह मामला भी अन्य कई मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।
रिपोर्ट — संतोष त्रिपाठी
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