⚡ आदिवासी बच्चों पर लाखों का फीस बोझ, मां भटकी दर-दर — अंततः जागा सिस्टम ⚡
बैतूल से देवीनाथ लोखंडे की रिपोर्ट
बैतूल जिले के विकासखंड घोड़ाडोंगरी के अंतर्गत आने वाले सुखाढाना स्थित पी.एल.एस. इंटरनेशनल स्कूल का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां पढ़ रहे गरीब आदिवासी महिला के दो बच्चों पर स्कूल प्रबंधन ने लाखों रुपये का भारी-भरकम फीस बोझ डाल दिया। आर्थिक तंगी से जूझ रही महिला ने हर संभव दरवाजे पर दस्तक दी—गांव के सरपंच से लेकर नेताओं और समाजसेवियों तक, यहां तक कि प्रशासनिक अधिकारियों से भी मदद मांगी, लेकिन लंबे समय तक उसे कहीं से कोई राहत नहीं मिली।
💔 बेबस मां की पीड़ा
गरीब आदिवासी महिला अपने बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित थी। लेकिन फीस के दबाव ने उसकी कमर तोड़ दी। स्कूल प्रबंधन ने न केवल फीस जमा करने के लिए दबाव बनाया, बल्कि फीस न भरने पर बच्चों पर अतिरिक्त पेनाल्टी भी लगाई गई। इस कारण परिवार पर लाखों रुपये का बोझ बढ़ता चला गया।
मां ने बार-बार स्थानीय नेताओं, समाजसेवियों और अधिकारियों से मदद की गुहार लगाई, लेकिन हर तरफ से निराशा ही हाथ लगी।
✊ प्रेस और समाजसेवियों का हस्तक्षेप
जब मामला बेहद गंभीर हो गया और बच्चों की पढ़ाई पर संकट गहराने लगा, तब प्रेस मीडिया पत्रकार कल्याण संघ बैतूल के पदाधिकारी आगे आए। जिला अध्यक्ष राकेश सिंह, जिला उपाध्यक्ष देवीनाथ लोखंडे और समाजसेवी कृष्णा मर्सकोले ने महिला को न्याय दिलाने की ठानी।
लगातार प्रयासों और हस्तक्षेप के बाद आखिरकार स्कूल प्रबंधन को झुकना पड़ा और बच्चों रूपाली व प्रियांशु को टी.सी. (ट्रांसफर सर्टिफिकेट) जारी कर दिया गया।
🏫 शिक्षा विभाग की भूमिका
इस पूरे मामले में जिले और विकासखंड के शिक्षा विभाग के अधिकारियों की भी अहम भूमिका मानी जा रही है। सूत्रों के मुताबिक, शिक्षा विभाग ने स्कूल प्रबंधन से बात कर मामले को सुलझाने में सक्रिय पहल की। अधिकारियों की सख्ती के बाद ही बच्चों को टी.सी. मिल सका।
❓ बड़ा सवाल
यह मामला अब जिले भर में चर्चा का विषय बन चुका है। लोगों के बीच कई सवाल गूंज रहे हैं—
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क्या शिक्षा के अधिकार की आड़ में निजी स्कूल गरीब परिवारों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं?
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क्या फीस वसूली की आड़ में बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाना उचित है?
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शासन-प्रशासन अब भी ऐसे स्कूलों पर शिकंजा कसने में क्यों नाकाम है?
🌍 जिले में मचा हड़कंप
घटना सामने आते ही यह मामला पूरे बैतूल जिले में चर्चा का केंद्र बन गया। स्थानीय लोग इसे शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त खामियों का जीता-जागता उदाहरण बता रहे हैं। समाजसेवियों का कहना है कि शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) के तहत गरीब और आदिवासी बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार है, लेकिन कई निजी स्कूल नियमों को ताक पर रखकर खुलेआम मनमानी कर रहे हैं।
🔎 नजीर बनेगा यह मामला
इस घटना ने न केवल शिक्षा विभाग को झकझोरा है, बल्कि समाज को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरत भी आज गरीबों के लिए किस कदर मुश्किल बना दी गई है। अब देखना होगा कि शासन-प्रशासन इस मामले को एक नजीर बनाकर आगे ऐसी मनमानी पर रोक लगाता है या फिर यह भी बाकी मामलों की तरह धीरे-धीरे दबा दिया जाएगा।

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