खरीफ फसलों के लिए कृषि वैज्ञानिकों की समसामयिक सलाह
कृषि विज्ञान केंद्र बैतूल बाजार एवं कृषि विभाग की टीम ने किसानों के खेतों का किया निरीक्षण
बैतूल।
अतिवर्षा और मौसम की मार से खरीफ फसलें प्रभावित हो रही हैं। ऐसे में किसानों को सही समय पर तकनीकी मार्गदर्शन और रोग-कीट प्रबंधन की सलाह देना बेहद जरूरी हो गया है। इसी उद्देश्य से कृषि विज्ञान केंद्र, बैतूल बाजार और कृषि विभाग की संयुक्त टीम ने 13 सितंबर को मुलताई विकासखंड के विभिन्न गांवों का दौरा किया।
इस दल में पौध संरक्षण वैज्ञानिक आर. डी. बारपेटे, उपसंचालक कृषि डॉ. आनंद कुमार बड़ोनिया, सहायक संचालक कृषि सुरेंद्र कुमार परहाते, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी घनश्याम घिघोडे, फसल बीमा प्रतिनिधि सचिन झाड़े और दीपांशु हरोड़े शामिल रहे। टीम ने ग्राम परमंडल के कृषक भारत चौहान, किशोरी झाड़े, तिलकचंद्र बोरबन तथा ग्राम बाड़ेगांव के कृषक राजेश चौरे के खेतों का निरीक्षण किया।
सोयाबीन में रोग और कीट का प्रकोप
निरीक्षण में पाया गया कि सोयाबीन फसल में अतिवृष्टि के कारण जड़ एवं तना सड़न और अन्य फफूंद जनित रोग पनप रहे हैं। साथ ही तना मक्खी के प्रकोप से पौधों में पीलापन दिखाई दे रहा है। हालांकि पीला मोजेक रोग का असर बहुत कम पाया गया।
वैज्ञानिक आर. डी. बारपेटे ने बताया कि पीला मोजेक रोग सफेद मक्खी से फैलता है। यदि प्रारंभिक अवस्था में इसके लक्षण दिखें तो प्रभावित पौधों को उखाड़कर खेत से बाहर कर देना चाहिए। सफेद मक्खी नियंत्रण हेतु थायोमिथोक्सम+लेम्डा सायहेलोथ्रिन (125 मि.ली./हे.) या बीटासायफ्लुथ्रिन+इमिडाक्लोप्रिड (350 मि.ली./हे.) का छिड़काव करने की सलाह दी गई।
सोयाबीन के प्रमुख कीट सेमीलूपर के नियंत्रण के लिए स्पायनेटोरम 11.7 एससी (450 मि.ली./हे.) का छिड़काव करने पर जोर दिया गया। साथ ही यह भी बताया गया कि यदि फसल की परिपक्वता अवधि पूरी हो चुकी है तो पत्तों का पीला पड़ना सामान्य है, इसे किसान मोजेक रोग न समझें।
मक्का फसल में सावधानी
निरीक्षण में मक्का की फसल में फॉल आर्मी वर्म, जीवाणुजन्य स्टॉक रॉट और शीथ ब्लाइट जैसे रोग पाए गए। कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को यूरिया का प्रयोग रोकने और संक्रमित पौधों को खेत से निकालने की सलाह दी।
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फॉल आर्मी वर्म नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 0.5 ग्राम/लीटर या फ्लूबेंडामाइड 0.5 मि.ली./लीटर का छिड़काव।
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बेक्टिरियल स्टॉक रॉट नियंत्रण के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम/लीटर या स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 0.2 ग्राम/लीटर का छिड़काव।
धान में रोग और कीट
धान की फसल में लीफ ब्लाइट रोग और तना छेदक, पत्ती लपेटक, गंधी बग, फुदका आदि कीट देखे गए।
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लीफ ब्लाइट नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट+टेट्रासाइक्लिन (1 ग्राम) तथा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 30 ग्राम/10 लीटर पानी का छिड़काव।
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तना छेदक से बचाव के लिए क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% एससी @60 मि.ली./एकड़।
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पत्ती लपेटक एवं फुदका नियंत्रण के लिए कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड 50%+बुप्रोफेजिन 10% डब्ल्यूपी @320 ग्राम/एकड़ का छिड़काव सुझाया गया।
दलहनी और तिलहनी फसलें
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अरहर में झुलसा रोग की आरंभिक स्थिति पाई गई, जिसमें स्वस्थ पौधे अचानक मुरझाने लगते हैं। किसानों को सतर्क रहने की सलाह दी गई।
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मूंगफली में कॉलर रॉट और टिक्का रोग देखे गए। नियंत्रण के लिए टेब्यूकोनाजोल (750 मि.ली./हे.) तथा काबेंडाजिम+मैन्कोजेब (2 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करने की सलाह दी गई।
किसानों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव
कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि किसी भी दवा का छिड़काव करने से पहले किसान अपने कृषि अधिकारी या कृषि विज्ञान केंद्र से परामर्श अवश्य लें। दवाओं का प्रयोग निर्धारित मात्रा और समय पर ही करें, ताकि लाभ अधिक मिले और नुकसान से बचा जा सके।
साथ ही किसानों से अपील की गई कि यदि अतिवृष्टि या अन्य कारणों से फसल क्षति होती है, तो तुरंत फसल बीमा हेल्पलाइन नंबर 14447 पर सूचना दर्ज कराएँ। इससे मौके पर फसल क्षति का आकलन कर उचित मुआवजा दिलाया जा सकेगा।
बैतूल जिला ब्यूरो चीफ – देवीनाथ लोखंडे की रिपोर्ट

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