December 19, 2025

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कचरे से कमाई की कहानी: सीडीओ ने 25 कृषकों को नवसारी शैक्षणिक भ्रमण के लिए किया रवाना, केला तने से खुलेगा आय का नया द्वार

कचरे से कमाई की कहानी: सीडीओ ने 25 कृषकों को नवसारी शैक्षणिक भ्रमण के लिए किया रवाना, केला तने से खुलेगा आय का नया द्वार

लखीमपुर खीरी जिले में कृषि नवाचार और ग्रामीण सशक्तिकरण की दिशा में एक सराहनीय पहल देखने को मिली है। केले के तने को, जिसे आमतौर पर फसल कटाई के बाद बेकार समझकर फेंक दिया जाता है, अब कमाई का मजबूत जरिया बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। इसी उद्देश्य से नाबार्ड के FSPF फंड से स्वीकृत “केला फाइबर आधारित उत्पाद” डीपीआर परियोजना के तहत जिले के 25 कृषक और स्वयं सहायता समूह सदस्यों को गुजरात के नवसारी कृषि विश्वविद्यालय में शैक्षणिक भ्रमण के लिए रवाना किया गया।

विकास भवन परिसर में आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य विकास अधिकारी अभिषेक कुमार की उपस्थिति ने पूरे आयोजन को खास बना दिया। सीडीओ ने हरी झंडी दिखाकर कृषकों के दल को रवाना किया और बस में स्वयं जाकर महिला एवं पुरुष कृषकों से संवाद किया। यह दृश्य अपने आप में ग्रामीणों के मनोबल को बढ़ाने वाला रहा।

सीडीओ अभिषेक कुमार ने महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्यों से बातचीत करते हुए कहा कि यह यात्रा केवल एक भ्रमण नहीं है, बल्कि आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया गया एक मजबूत कदम है। उन्होंने कहा कि नवसारी से जो भी तकनीकी ज्ञान, अनुभव और प्रेरणा मिले, उसे अपने गांव तक सीमित न रखें, बल्कि आसपास के गांवों तक भी पहुंचाएं। यही इस यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

इस दल में कुल 25 सदस्य शामिल हैं, जिनमें 14 महिलाएं और 11 पुरुष कृषक हैं। ये सभी पलिया ब्लॉक से चयनित किए गए हैं। यह चयन इस उद्देश्य से किया गया है कि सीमांत और लघु कृषक भी आधुनिक तकनीकों से जुड़कर अपनी आय बढ़ा सकें।

कैपेसिटी बिल्डिंग और एक्सपोजर विजिट के तहत यह दल नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात का भ्रमण करेगा। वहां कृषक केले के तने से फाइबर निकालने की आधुनिक तकनीक, उससे उत्पाद निर्माण, मूल्य संवर्धन और उद्यमिता के सफल मॉडल को प्रत्यक्ष रूप से देखेंगे। विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।

नाबार्ड के डीडीएम प्रसून ने परियोजना की जानकारी देते हुए बताया कि यह परियोजना तीन प्रमुख घटकों पर आधारित है। पहला, केला फाइबर इंजीनियरिंग बोर्ड का निर्माण; दूसरा, केले के अवशेष से वर्मी कम्पोस्ट और तरल उर्वरक का निर्माण; और तीसरा, फाइबर आधारित हस्तशिल्प उत्पादों का विकास।

उन्होंने बताया कि केले के तने, जिसे पहले कचरा माना जाता था, अब उससे फाइबर निकालकर प्रति तना लगभग 10 रुपये तक का अतिरिक्त लाभ मिल रहा है। यदि इसे बड़े स्तर पर अपनाया जाए तो यह किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है।

परियोजना के तहत जिले के कुल 50 कृषक और 100 स्वयं सहायता समूह सदस्य लाभान्वित किए जाएंगे। इससे न केवल किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने में भी मदद मिलेगी।

इस अवसर पर पीडी डीआरडीए एस.एन. चौरसिया, एआरसीएस रजनीश कुमार सिंह, एलडीएम अशोक कुमार गुप्ता और सीवीओ डॉ. दिनेश सचान की उपस्थिति ने कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई।

यह पहल साबित करती है कि यदि सही मार्गदर्शन और तकनीकी सहयोग मिले, तो ग्रामीण भारत में भी नवाचार के जरिए आत्मनिर्भरता का सपना साकार किया जा सकता है।

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