सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस द्वारा संस्थापित संस्था सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद् के तत्त्वावधान में महाकुंभ मेला हरिश्चंद्र चौराहा स्थित शिविर में सत्संग सुनाते हुए महात्मा मोहन दास ने कहा, धर्मशास्त्र वास्तव में मानव जीवन का बुकलेट हैं। इस बात को समझाते हुए उन्होंने कहा जैसे हम कोई नयी मशीन खरीदने जाते हैं तो उसका एक लीफलेट या बुकलेट लेना पड़ता है। एक छोटी सी किताब उसके साथ मिलती है । उसमें उस मशीन के विषय में, जैसे उसका रख-रखाव, उसको चलाने की सावधानियाँ आदि सब कुछ लिखा रहता है। और यह शरीर भी तो एक मशीन है, यह साढ़े तीन हाथ का पुतला यह जो पिण्ड है, यह एक ऐसी मशीन है, जो दुनिया की सारी मशीनों को बनाता है और उन्हें आपरेट भी करता है। मानव रहित जो विमान हैं, उन्हें भी यही मशीन (शरीर) कन्ट्रोल-रूम में, अपने नियन्त्रण-कक्ष में, अपने स्टेशन पर बैठकर चला रही है और अंतरिक्ष में जो मानव रहित राकेट जा रहे हैं, उसको भी यही मानव शरीर रुपी मशीन चला रही है, तो यह मशीन जो दुनिया के सारे मशीनों को चला रही है, उसे भी तो हमें जानना चाहिये । यह जो मानव शरीर रूपी मशीन हम लोगों के पास है इसी का लीफलेट, बुकलेट हैं धर्मशास्त्र जिसमें इस मशीन से सम्बन्धित सारी जानकारियाँ मौजूद हैं। अर्थात मानव जीवन किसलिये है, इसकी मंजिल क्या है, इसे कैसे आपरेट करेंगे, इसे कैसे मंजिल तक ले जायेंगे– आदि आदि की जानकारियों को देने वाले को ही तो धर्मशास्त्र कहते हैं। इसका मेकैनिक ही तो सन्तपुरुष कहलाता है । महात्मा जी ने आगे कहा इसीलिए हमें शास्त्रों का अध्ययन करना-देखना-जानना तथा सन्त पुरूषों के वचन (सत्संग) सुनना एवं उनका पता करना चाहिये अगर हम शास्त्रों का अध्ययन नहीं करते हैं और सन्तों के वचन भी नहीं सुनते हैं तो हम कभी इस मानव जीवन को जान समझ नहीं पायेंगे।

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