सच्चाई की कीमत! भ्रष्टाचार उजागर करने पर पत्रकार को भेजा जेल
विवेक गुप्ता, एडिटर इन चीफ
लखीमपुर-खीरी। पत्रकारिता का धर्म सच्चाई को उजागर करना होता है, लेकिन जब सच बोलना ही अपराध बन जाए, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी जिले में सामने आया है, जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले एक पत्रकार को षड्यंत्र के तहत जेल भेज दिया गया।
कैसे फंसाया गया पत्रकार दीपक पंडित को?
‘द हिंदी खबर’ के संपादक दीपक पंडित पिछले कई महीनों से ब्लॉक बिजुआ में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे थे। उन्होंने ठेका कर्मचारी व कंप्यूटर ऑपरेटर रामदीप वर्मा की अवैध गतिविधियों के खिलाफ कई रिपोर्ट प्रकाशित कीं। दीपक पंडित ने आरोप लगाया कि रामदीप वर्मा पिछले 10 वर्षों से बिजुआ ब्लॉक में तैनात हैं और नियमों को ताक पर रखकर खुद ही कई ग्राम पंचायतों में ठेकेदारी कर रहे हैं।
इन ठेकों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ, जिसमें पंचायतों में इंटरलॉकिंग का कार्य भी शामिल था। आरोप है कि इंटरलॉकिंग का कार्य बेहद निम्न गुणवत्ता का हुआ और मनरेगा में 60/40 के अनुपात का भी उल्लंघन किया गया। इतना ही नहीं, सरकारी रिकॉर्ड में फर्जी हाजिरी लगाकर लाखों रुपये का घोटाला किया गया।
जिलाधिकारी और प्रशासन को किया था सूचित
दीपक पंडित ने इस भ्रष्टाचार की शिकायत जिलाधिकारी, मंडलायुक्त लखनऊ मंडल, मुख्य विकास अधिकारी और जिला पंचायत राज अधिकारी से की थी। उन्होंने इन अधिकारियों को डाक रजिस्ट्री के माध्यम से पत्र भेजकर अवैध ठेकेदारी और वित्तीय अनियमितताओं के बारे में अवगत कराया था। लेकिन इस शिकायत ने उनके लिए ही मुसीबत खड़ी कर दी।
षड्यंत्र कर फंसाया गया पत्रकार को
खुद पर शिकंजा कसता देख ब्लॉक कर्मचारियों और ठेका कर्मचारी रामदीप वर्मा ने पत्रकार दीपक पंडित के खिलाफ षड्यंत्र रच दिया। उनके खिलाफ भीरा थाने में झूठा मुकदमा दर्ज कराया गया। पुलिस ने बिना किसी जांच-पड़ताल के दीपक पंडित को बहाने से थाने बुलाया और वहां उन्हें 8 घंटे तक अपनी कस्टडी में रखा। इसके बाद अचानक उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया।
पुलिस ने पत्रकार के खिलाफ धारा 308/02 और धारा 308/05 के तहत मुकदमा दर्ज किया। बिना किसी निष्पक्ष जांच के इस तरह की कार्रवाई ने पत्रकारिता जगत में रोष पैदा कर दिया है।
पत्रकारों का फूटा गुस्सा, पुलिस अधीक्षक कार्यालय का घेराव
इस घटनाक्रम के बाद पत्रकारों ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई। जिले के सैकड़ों पत्रकारों ने पुलिस अधीक्षक कार्यालय का घेराव किया और ज्ञापन सौंपकर दीपक पंडित की तत्काल रिहाई और निष्पक्ष जांच की मांग की।
पत्रकार संगठन का कहना है कि अगर जल्द ही दीपक पंडित को न्याय नहीं मिला, तो यह आंदोलन पूरे प्रदेश में फैल सकता है।
क्या न्याय मिलेगा पत्रकार दीपक पंडित को?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या दीपक पंडित को न्याय मिलेगा या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा? क्या सरकार और प्रशासन भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाएगा, या फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को इसी तरह प्रताड़ित किया जाता रहेगा?
अब देखना होगा कि पत्रकार सुरक्षा परिषद फाउंडेशन के इस आंदोलन का क्या असर पड़ता है और क्या लखीमपुर-खीरी में सच की आवाज़ को दबाया जा सकेगा, या फिर दीपक पंडित को न्याय मिलेगा?
[इस मामले से जुड़ी हर अपडेट के लिए जुड़े रहें…]
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