June 14, 2025

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निघासन रोड की बदहाली: पैदल यात्रियों के लिए नहीं कोई जगह, प्रशासन बेखबर

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लखीमपुर खीरी जिले के निघासन रोड पर आम जनता की ज़िंदगी हर रोज़ खतरे में पड़ रही है, लेकिन जिम्मेदार आंखें मूंदे बैठे हैं। भुईफोरवानाथ चौराहे से लेकर उल्ल नदी सेतु तक का stretch किसी भी तरह से पैदल चलने वालों के लिए सुरक्षित नहीं है। यह सड़क हर समय भारी ट्रैफिक से जूझती है – ट्रैक्टर-ट्रॉलियाँ, ट्रकों की कतारें, तेज़ी से दौड़ती बाइकें और ऑटो… लेकिन पैदल राहगीरों के लिए कोई पैदल पथ (फुटपाथ) या अलग रास्ता नहीं है।

जानलेवा सफर हर रोज़

गाँव से बाज़ार जाने वाले मजदूर, स्कूल जाते बच्चे, बुज़ुर्ग महिलाएं, छोटे दुकानदार – सभी को जान हथेली पर रखकर इसी सड़क के किनारे-किनारे चलना पड़ता है। कई बार सड़क के किनारे चलते हुए लोग वाहनों की चपेट में आ सकते हैं , लेकिन इस ओर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।

प्रशासन की चुप्पी, नगर पालिका की उदासीनता

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि न तो जिला प्रशासन और न ही लखीमपुर नगर पालिका परिषद ने इस गंभीर स्थिति पर ध्यान दिया है। काफी दिनों  से इस सड़क की हालत जस की तस बनी हुई है।

“भूखी जनता, नंगी जनता, शासन की बनी तमाशा”

स्थानीय लोग बार-बार कहते हैं कि “भूखी जनता, नंगी जनता, शासन की बनी तमाशा है।” यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि उस असहायता और उपेक्षा की तस्वीर है जिससे रोज़ हजारों लोग दो-चार हो रहे हैं। जहां एक ओर शहर में स्मार्ट सिटी जैसी योजनाओं के नाम पर करोड़ों खर्च हो रहे हैं, वहीं लखीमपुर के इस हिस्से में मूलभूत पैदल पथ तक उपलब्ध नहीं है।

क्या हो कोई बड़ा हादसा?

अब सवाल यह उठता है – क्या प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है? क्या जब कोई बड़ा हादसा होगा , तब अधिकारियों की नींद खुलेगी? या फिर जब स्थानीय जनता का गुस्सा सड़कों पर फूटेगा, तभी जिम्मेदार लोग जागेंगे?

मांगें

स्थानीय लोगों की मांग है:

  1. निघासन रोड पर जल्द से जल्द सुरक्षित पैदल पथ (फुटपाथ) का निर्माण कराया जाए।

  2. सड़क किनारे अवैध अतिक्रमण हटाकर रास्ते को चौड़ा किया जाए।

  3. ट्रैफिक पुलिस की नियमित निगरानी बढ़ाई जाए ताकि सड़क नियमों का पालन हो सके।

  4. स्कूल जाने वाले बच्चों और बुजुर्गों के लिए सड़क पार करने के सुरक्षित इंतजाम किए जाएं।

यह एक ऐसी लड़ाई है जो जीवन और मृत्यु के बीच है – और जब प्रशासन की चुप्पी मौत को न्योता दे, तब पत्रकारिता का धर्म है इस चुप्पी को तोड़ना।