सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा संपन्न
रास-लीला से लेकर सुदामा चरित्र तक गूंजा भक्ति और उत्सव का रंग
बैतूल। शहर की गर्ग कॉलोनी स्थित बिंजवे परिवार में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का भव्य समापन धार्मिक उल्लास और भक्ति भाव से हुआ। इस पावन आयोजन ने न केवल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक आनंद दिया बल्कि समाज में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे महत्वपूर्ण संदेश भी प्रसारित किए।
कलश यात्रा से हुई भव्य शुरुआत
कथा के प्रथम दिन का शुभारंभ कलश यात्रा के साथ हुआ। इस यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। भक्तजन पारंपरिक वेशभूषा और धार्मिक गीतों के साथ शोभायात्रा में शामिल हुए। कलश यात्रा के उपरांत भागवत जी की स्थापना की गई। पंडित श्री श्रीकांत जी हलवे ने मंत्रोच्चार के बीच कथा का शुभारंभ करते हुए सूर्यपुत्री ताप्ती नदी की महिमा का विस्तार से वर्णन किया।
भजन संध्या और बेटी बचाओ का संदेश
दूसरे दिन महिलाओं द्वारा भजन संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें भक्ति रस से ओतप्रोत गीतों ने वातावरण को अलौकिक बना दिया। कथा के दौरान पंडित श्रीकांत जी ने समाज में बेटियों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जैसे ‘शिव’ शब्द में छोटी ‘ई’ की मात्रा आवश्यक है, वैसे ही बेटियां हमारे समाज की आत्मा हैं। बिना उनके समाज अधूरा है। यह भावपूर्ण संदेश उपस्थित जनमानस को गहराई तक प्रभावित कर गया।
शिव-पार्वती विवाह और ध्रुव की कथा
तीसरे दिन कथा में शिव-पार्वती विवाह का मनोहारी प्रसंग सुनाया गया। इस अवसर पर भव्य शिव तांडव की प्रस्तुति हुई, जिसने श्रद्धालुओं को भक्ति भाव से सराबोर कर दिया। साथ ही ध्रुव महाराज की अद्भुत कथा ने बच्चों और युवाओं को भक्ति और दृढ़ निश्चय का महत्व समझाया।
प्रह्लाद की भक्ति और कृष्ण जन्मोत्सव
चौथे दिन कथा का केंद्र प्रह्लाद की अटूट भक्ति और हिरण्यकश्यप के वध का प्रसंग रहा। जनाबाई के चरित्र का वर्णन करते हुए पंडित जी ने बताया कि सच्ची भक्ति हर कठिनाई को सरल बना देती है। इसी दिन श्रद्धालुओं ने बड़े हर्षोल्लास से भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया। बधाइयों, झांकियों और नृत्य प्रस्तुतियों ने वातावरण को उत्सवमय बना दिया।
राधा-कृष्ण रास और रुक्मिणी विवाह
पाँचवें और छठे दिन कथा का मुख्य आकर्षण भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ रहीं। राधा-कृष्ण की रास-लीला ने श्रद्धालुओं को प्रेम और भक्ति के अद्वितीय संगम से परिचित कराया। कंस वध की कथा ने धर्म की विजय और अधर्म के अंत का संदेश दिया। इसके बाद रुक्मिणी विवाह का भावनात्मक और भव्य प्रसंग प्रस्तुत किया गया, जिसने कथा को और भी रोचक और जीवंत बना दिया।
सुदामा चरित्र से सिखाया सच्चे प्रेम का महत्व
सातवें और अंतिम दिन पंडित श्री श्रीकांत जी ने सुदामा चरित्र का भावपूर्ण वर्णन किया। उन्होंने बताया कि सुदामा केवल चावल की पोटली भेंट स्वरूप लेकर द्वारका पहुँचे थे, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उस अल्प भेंट को अपने प्रेम से स्वीकार कर सम्पूर्ण ब्रह्मांड सुदामा के नाम कर दिया। इस प्रसंग ने उपस्थित भक्तजनों को निस्वार्थ प्रेम और सच्ची भक्ति का महत्व समझाया। इसी दिन कथा में श्रीकृष्ण के 16,108 विवाहों का भी उल्लेख हुआ।
पूर्णाहुति और विशाल भंडारा
कथा के समापन पर विधिवत हवन और आहुति की गई। पूर्णाहुति के उपरांत विशाल भंडारे का आयोजन हुआ, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। भक्तजन भक्ति, प्रेम और आनंद की गहरी छाप अपने हृदय में लेकर लौटे।
भक्ति और सामाजिक संदेश का संगम
यह सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा केवल धार्मिक आयोजन भर नहीं रही, बल्कि इसमें समाज को जोड़ने और सकारात्मक संदेश देने का भी प्रयास हुआ। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का संदेश, भगवान की लीलाओं के आध्यात्मिक प्रसंग और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने इस आयोजन को अविस्मरणीय बना दिया।
इस प्रकार गर्ग कॉलोनी स्थित बिंजवे परिवार में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ने सात दिनों तक श्रद्धालुओं को भक्ति, प्रेम और आनंद की अद्भुत यात्रा कराई।
📌 जिला ब्यूरो – देवीनाथ लोखंडे की रिपोर्ट

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